कभी शैतानी न करने वाला लड़का
बाल कहानी
अलका सरावगी
गोलू के बारे में बचपन से लेकर आज तक किसी ने कोई ऐसी कहानी नहीं सुनी थी जिसमें उसकी शैतानी की कोई बात हो। वह क्लास ‘नाइन ए’ यानी नौवीं कक्षा में हमेशा प्रथम आने वाला लड़का था। उसका ध्यान पढ़ाई में इतना रमता कि उसके मम्मी-पापा मन-ही-मन चाहते कि वह अपने कमरे और किताबों की दुनिया से निकलकर बाहर भी देखे। किताबों के बाहर उसका यह ज्ञान सिर्फ टीवी आधारित था। गोलू किताबों की दुनिया से निकलता तो टीवी की दुनिया में खोने के लिए।
गोलू के घर में शैतान बच्चों की भरमार थी। उसके अपने बड़े भाई मोलू और बड़ी बहन मौली के अलावा उसके ताऊ का एक लड़का और चाचा की दो लड़कियां थीं। सारे बच्चे इकट्ठे होकर काफी हल्ला-गुल्ला और बदमाशियां करते। सबकी सरदार गोलू की अपनी बहन मौली थी। गोलू जितना सीधा और शान्त था, वह उतनी ही नटखट थी।
गोलू को यदि किसी से कोई परेशानी थी, तो वह बड़े भाई मोलू से। उसके कारण सप्ताह में कम-से-कम एक बार तो गोलू लेट हो जाता। वह तैयार होकर तनाव में भरा रहता कि कब मोलू तैयार हो और किसी तरह वे लोग स्कूल के लिए निकलें।
कभी किसी को गोलू को कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ती थी कि यह करो या मत करो। सब जानते थे कि वह कोई गलत काम करना पसन्द नहीं करता । वह अपना सब काम सही वक्त पर सही तरीके से करता। सच पूछा जाए, तो वह कुछ डरपोक भी था । दीवाली पर वह पटाखों को हाथ तक नहीं लगाता था।
शायद यह डर और सावधानी गोलू ने बहुत बचपन में यानी क्लास ‘वन’ में अपने स्कूल की मिस डिसूजा से सीखी थी। मिस डिसूजा से सारे बच्चे थर-थर कांपते थे, क्योंकि कुछ भी गलती होने पर वह सीधे स्केल से बच्चों के हाथ पर मारती थीं। धीरे-धीरे दादा-दादी से लेकर चाची की छोटी लड़की तक सबको पता चल गया था कि गोलू को कोई बात अच्छी नहीं लगती, तो वह एकदम चुप हो जाता है। हालांकि वह टीवी के सीरियल या फिल्मी एक्टरों की हूबहू नकल कर लेता था।
किसी को पता भी नहीं चला कि गोलू धीरे-धीरे किस तरह उन लोगों की जिन्दगी से कब सचमुच अदृश्य हो गया। गोलू अपना खाना टीवी के सामने मंगवाकर खाने लगा। यदि कोई कुछ कहता, तो वह बिना खाए और बिना कुछ कहे पूरा-पूरा दिन भूखा रह लेता। बाकी बच्चों की तरह न गोलू की नए कपड़े या सामान खरीदने की फरमाइशें थीं, न वह पॉकेट मनी लेकर स्कूल की कैंटीन से कुछ खरीदने की इच्छा रखता। सबने आपस में एक बार बातचीत की कि गोलू बाकी बच्चों की तुलना में सांवला है, शायद इसलिए वह कुछ उदास है। एक बार दादी की किसी बहन ने उसके सामने ऐसा कुछ कह डाला था। तभी से शायद वह बाहर के लोगों के सामने कभी नहीं आता था। तय किया कि गोलू के लिए अपने कमरे से बाहर घर के बाकी लोगों के साथ समय बिताना बहुत जरूरी है। गोलू की मम्मी इतने तनाव में आ गईं कि उन्हें बुखार हो गया। घर में उन्हीं दिनों एक नया मेहमान शामिल हो गया था। चाची को एक छोटा-सा प्यारा बेटा हुआ। सब उसे देखने अस्पताल जाने लगे, तो देखा कि गोलू साथ जाने के लिए पहले से ही नीचे खड़ा है। अस्पताल में बच्चों को देखने के लिए कांच के सामने बड़ी भीड़ लगी थी। पर गोलू कांच के सामने से किसी तरह नहीं हटा। वह पूरे समय खड़ा अपने छोटे भाई को तब तक देखता रहा जब तक मिलने का समय खत्म नहीं हो गया। गोलू जब चाची से मिला, तो उन्होंने पूछा, ‘मुन्ना कैसा लगा? गोलू बोला, ‘वो तो एकदम गोरा है।’ तब चाची ने कहा, ‘मैं चाहती हूं कि वह तुम्हारे जैसा बने। इसलिए उसका ‘डाक-नाम’ ‘ग’ पर ही रखूंगी। तुम बताओ कि उसका नाम क्या रखा जाए? अन्त में तय हुआ कि उसका प्यार का नाम ‘गुलगुल’ रखा जाए।
गोलू गुलगुल का ख्याल रखने लगा। फुरसत मिलते ही वह चाची के कमरे का चक्कर लगा आता। उसका टीवी देखना लगभग छूट गया था। साल भर का होते-होते गुलगुल गोलू के सिवा किसी के पास जाता ही नहीं था। तीन साल का होते-होते उसने गोलू के कमरे में अपनी चादर-तकिया जमा लिया था। उसका खाना, नहाना, स्कूल के लिए तैयार होना कुछ भी गोलू के बिना नहीं होता।
जाहिर है कि गोलू को बदलने के लिए किसी को कुछ करना नहीं पड़ा। वह अब भी कम बोलता है, पर जब बोलता है, तो उसके मजाक पर जो हंसी का फव्वारा छूटता है, उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता।